बारूद की महक को कब हाथोँ से जाने में वक़्त लगा है,
वक़्त तो उनके दिये ज़ख्मों को भरने में लगा है।
तुम मानते नहीं हो, शायद मानोगे भी नहीं
समझते तो हो ,लेकिन समझना चाहते नहीं हो
अब और कैसे कहें,
कि दर्द -ऐ -हिज्र क्या है।
May 15, 2014 by A Nerd Anarch
बारूद की महक को कब हाथोँ से जाने में वक़्त लगा है,
वक़्त तो उनके दिये ज़ख्मों को भरने में लगा है।
तुम मानते नहीं हो, शायद मानोगे भी नहीं
समझते तो हो ,लेकिन समझना चाहते नहीं हो
अब और कैसे कहें,
कि दर्द -ऐ -हिज्र क्या है।
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