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Archive for May, 2014

बारूद की महक को कब हाथोँ से जाने में वक़्त लगा है,
वक़्त तो उनके दिये ज़ख्मों को भरने में लगा है।

तुम मानते नहीं हो, शायद मानोगे भी नहीं
समझते तो हो ,लेकिन समझना चाहते नहीं हो

अब और कैसे कहें,
कि दर्द -ऐ -हिज्र क्या है।

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